शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

ग़ज़ल 410 [64 A] : खुलने दो खिड़कियों को ,--

 ग़ज़ल 410 [64 A]

221---2122---// 221---2122


खुलने दो खिड़कियों को , ताजी हवा तो आए

बहका हुआ है गुलशन, कुछ गीत तो सुनाए ।


माना कि पर कटे हैं , दिल में तो हौसले हैं .

कह दो ये आसमाँ से, मुझको न आजमाए ।


हर शाम राह देखी , रख्खे दिए जला कर ,

अब याद भी नहीं है,  कितने दिए जलाए ।


दीदार का सफ़र तो ,इतना नहीं है आसाँ

दीवानगी ने मुझकॊ, क्या क्या न दिन दिखाए ।


चेहरे तमाम चेहरे , सब एक-सा दिखे  है ।

किसको सही कहे दिल. किसको ग़लत बताए।


महफ़िल सज़ा करेगी , कुछ लोग जब न होंगे ,

उनको भी याद करना , जो लौट कर न आए ।


शायद समझ वो जाए, तारीफ़-ए-इश्क़ क्या है,

जब प्यार में हम ’आनन’, ख़ुद को मिटा के आए ।


-आनन्द.पाठक-

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