ग़ज़ल 410 [64 A]
221---2122---// 221---2122
खुलने दो खिड़कियों को , ताजी हवा तो आए
बहका हुआ है गुलशन, कुछ गीत तो सुनाए ।
माना कि पर कटे हैं , दिल में तो हौसले हैं .
कह दो ये आसमाँ से, मुझको न आजमाए ।
हर शाम राह देखी , रख्खे दिए जला कर ,
अब याद भी नहीं है, कितने दिए जलाए ।
दीदार का सफ़र तो ,इतना नहीं है आसाँ
दीवानगी ने मुझकॊ, क्या क्या न दिन दिखाए ।
चेहरे तमाम चेहरे , सब एक-सा दिखे है ।
किसको सही कहे दिल. किसको ग़लत बताए।
महफ़िल सज़ा करेगी , कुछ लोग जब न होंगे ,
उनको भी याद करना , जो लौट कर न आए ।
शायद समझ वो जाए, तारीफ़-ए-इश्क़ क्या है,
जब प्यार में हम ’आनन’, ख़ुद को मिटा के आए ।
-आनन्द.पाठक-
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