रविवार, 18 अगस्त 2024

अनुभूतियाँ 146/33

 अनुभूतियाँ 146/33


:!:

जब अपने मन का ही  करना

फिर क्या तुमसे कुछ भी कहना ।

जिसमें भी हो ख़ुशी तुम्हारी

काम वही तुम करती रहना ।


:2:

अपने अंदर नई चेतना

किरणों का भंडार सजाए ।

व्यर्थ इन्हें क्या ढोते रहना ,

अगर समय पर काम न आए।


:3:

सूरज डूब गया हो पूरा

ऐसी बात नहीं है साथी ।

उठॊ चलो, प्रस्थान करो तुम

अभी रोशनी है कुछ बाक़ी ।


:4:

सफ़र हमारा नहीं रुकेगा,

जब तक मन में आस रहेगी ।

जब तक मंज़िल हासिल ना हो

इन अधरों  पर प्यास रहेगी ।


-आनन्द. पाठक-


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