अनुभूतियाँ 146/33
:!:
जब अपने मन का ही करना
फिर क्या तुमसे कुछ भी कहना ।
जिसमें भी हो ख़ुशी तुम्हारी
काम वही तुम करती रहना ।
:2:
अपने अंदर नई चेतना
किरणों का भंडार सजाए ।
व्यर्थ इन्हें क्या ढोते रहना ,
अगर समय पर काम न आए।
:3:
सूरज डूब गया हो पूरा
ऐसी बात नहीं है साथी ।
उठॊ चलो, प्रस्थान करो तुम
अभी रोशनी है कुछ बाक़ी ।
:4:
सफ़र हमारा नहीं रुकेगा,
जब तक मन में आस रहेगी ।
जब तक मंज़िल हासिल ना हो
इन अधरों पर प्यास रहेगी ।
-आनन्द. पाठक-
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