दोहे 21 : श्रावणी
सोमनाथ के द्वार पर, शरणागत 'आनन्द ।
ना जानू कैसे करूँ, स्तुति वाचन छन्द ।।
शिव जी से क्या माँगना , जाने मेरा हाल ।
बस इतना ही दें प्रभू , मन ना हो वाचाल ॥
भक्ति-भाव में मन रमे, बाबा भोलेनाथ ।
वर इतना बस दीजिए, कभी ना छूटे हाथ ॥
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