मंगलवार, 6 अगस्त 2024

ग़ज़ल 415 [63 A] : हमेशा क्यों किया करते हो बस --

 ग़ज़ल 415 [63 A]

1222---1222---1222---1222


हमेशा क्यों किया करते हो बस तलवार की बातें

कभी तो कर लिया करते दिल-ए-दिलदार की बातें ।


जो सरहद की लकीरें हैं न दिल पर खीचिएँ उनको 

सभी मिट जाएँगी करते रहें कुछ प्यार की बातें ।


उठा कर देखिए तारीख़ पिछले  इन्क़लाबों की ,

सड़क पर आ गई जनता, हवा दरबार की बातें ।


लगा कर आग नफ़रत की जला दोगे अगर गुलशन

करेगा कौन फिर बोलॊ गुल-ओ-गुलजार की बातें ।


अगर करनी बहस है तो करो मुफ़लिस की रोटी पर

न टी0वी0 पर करो बस बैठ कर बेकार की बातें ।


यहीं जीना, यहीं मरना, यहीं रहना है हम सबको ,

करे फिर किसलिए हम सब अबस तकरार की बातें।


बहुत अब हो चुकी ’आनन’ मंदिर और मसज़िद की

सुनो अब तो ग़रीबों की , सुनो लाचार की बातें  ।


-आनन्द.पाठक- 

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