ग़ज़ल 415 [63 A]
1222---1222---1222---1222
हमेशा क्यों किया करते हो बस तलवार की बातें
कभी तो कर लिया करते दिल-ओ-दिलदार
की बातें ।
लकीरे
हैं जो सरहद की, न उनको खीचिए दिल पर
सभी मिट जाएँगी करते रहें कुछ प्यार की बातें ।
सियासत
तक दहल जाती, लिए जब हाथ में परचम
उतर सड़को पे जनता जब करे ललकार की बातें
लगा कर आग नफ़रत की जला दोगे अगर गुलशन
करेगा कौन फिर बोलॊ गुल-ओ-गुलजार की बातें ।
बहस
करनी अगर हो तो करो मुफ़लिस की रोटी पर
न टी0वी0 पर करो बस बैठ कर बेकार की बातें ।
यहीं जीना, यहीं मरना, यहीं रहना है हम सबको ,
करे फिर किसलिए हम सब अबस तकरार की बातें।
बहुत अब हो चुकी ’आनन’ ये मंदिर और मसज़िद की
सुनो अब तो ग़रीबों की , सुनो लाचार की बातें ।
-आनन्द.पाठक-
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