अनुभूतियाँ 147/34
:1:
उद्यम रत हैं जो दुनिया में
उन्हें भला अवकाश कहाँ है ।
उड़ने पर जब आ जाएँ तो
एक नया आकाश वहाँ है ।
उद्यम रत हैं जो दुनिया में
उन्हें भला अवकाश कहाँ है ।
उड़ने पर जब आ जाएँ तो
एक नया आकाश वहाँ है ।
:2:
नई चेतना, नई प्रेरणा ,
हिम्मत हो, कल्पना नई हो ,
आसमान ख़ुद झुक जाएगा
पंख नया, भावना नई हो ।
:3:
क्या क्या नहीं सपन देखे थे
जीवन की मधु अमराई में ।
जाने किस से बातें करता
टूटा दिल अब तनहाई में ।
:4:
इतना साथ निभाया तुमने
जीवन में, यह कम तो नहीं है
बहुत बहुत आभार तुम्हारा
देखो, आंखें नम तो नहीं है ।
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