ग़ज़ल 413 [ 65-फ़]
2122---1212---22
हर ज़ुबाँ पर है बस यही चर्चा ,
राज़ हो फ़ाश जब उठे परदा ।
इतनी ताक़त कहाँ थी आँखों में
देखता मैं जो आप का जल्वा ।
लोग पूछा किए अजल से ही
आप से कौन सा है ये रिश्ता ।
दिल में आकर लगे समाने वो
दिल ये होने लगा है बेपरवा ।
मर गई जब से है अना अपनी
अब न कोई रहा गिला शिकवा ।
मिल गया जा के जब समंदर में
फिर वो दर्या कहाँ रहा दर्या ।
उस तरफ़ क्यों न तुम गए ’आनन’
जिस तरफ़ बाग़रज़ खड़ी दुनिया ।
-आनन्द.पाठक-
बाग़रज़ = स्वार्थ से
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