सोमवार, 5 अगस्त 2024

ग़ज़ल 413 [ 65-फ़] : हर ज़ुबाँ पर है बस यही चर्चा

 ग़ज़ल 413  [ 65-फ़]

2122---1212---22


हर ज़ुबाँ पर है बस यही चर्चा ,

राज़ हो फ़ाश जब उठे परदा ।


इतनी ताक़त कहाँ थी आँखों में 

देखता मैं जो आप का जल्वा ।


लोग पूछा किए अजल से ही

आप से कौन सा है ये रिश्ता ।


दिल में आकर लगे समाने वो

दिल ये होने लगा है बेपरवा । 


मर गई जब से है अना अपनी

अब न कोई रहा गिला शिकवा ।


मिल गया जा के जब समंदर में

फिर वो दर्या कहाँ रहा दर्या ।


उस तरफ़ क्यों न तुम गए ’आनन’

जिस तरफ़ बाग़रज़ खड़ी दुनिया ।


-आनन्द.पाठक-


बाग़रज़ = स्वार्थ से

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