शनिवार, 3 अगस्त 2024

ग़ज़ल 412 [64-फ़] : जिसको चाहा कहाँ उसे पाया

 ग़ज़ल 412 [64-फ़  ]

2122---1212---22


जिसको चाहा, कहाँ उसे पाया ।

वो गया लौट कर नहीं   आया ॥


ज़िंदगी बोल कर गई जब से ,

फिर ये दुनिया लगी मुझे माया ।


ग़ैब से ही करे इशारे. वो ,

सामने कब भला नज़र आया ।


एक ही है जो मेरा अपना है

और कोई मुझे नहीं  भाया ।


शेख़ साहब न रोकिए मुझको

आज महबूब मेरे घर आया ।


रंज़-ओ-ग़म, चन्द अश्क़ के क़तरे

इश्क़ का बस यही है सरमाया ।


कैसे कह दूँ मैं इश्क़ में ’आनन’

कौन तड़पा है कौन तड़पाया ।


-आनन्द.पाठक-

 




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