चन्द माहिए : क़िस्त 70
1
यह दुनिया का मेला
ख़त्म हुआ ,साथी !
अब चलने की बेला
2
कहने को कहता है
अपना होकर भी
दिल में कब रहता है
3
क्या क्या न कराती है
माया कुर्सी की
दस्तार गिराती है
4
क्या पाया ,क्या खोया
इसी ख़यालों में
दिन रात नहीं सोया
5
करता भी क्या करता
पर्दे के पीछे
इक और बड़ा परदा
-आनन्द.पाठक-
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