क़िस्त 72
1
इक तो तेरा यौवन
यूँ ही कहर ढाता
उस पर यह अल्हड़पन
2
चलता न बहाना है
जब भी पुकारे वो
जाना ही जाना है
3
वो पास मेरे जब से
खुद में नहीं ख़ुद हूँ
अब क्या माँगू रब से
4
क्या क्या न सहे हमने
तेरे जुल्मों पर
उफ़ तक न कहे हमने
5
मदमस्त हवाएँ है
तुम भी आ जाते
घिर आईं घटाएँ हैं
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