क़िस्त 62
1
दिन भर का थका
होगा
कुछ न हुआ हासिल
दुनिया से
ख़फ़ा होगा
2
अब लौट के फिर जाना
एक भरम था जग
सच उसको ही माना
3
जब जाना है ,बन्दे !
काट ज़रा अब तो
सब माया के फन्दे
4
तुम को न भरोसा है
कोई इस दिल में
मिलने को रोता है
5
इक मेरी मायूसी
उस पर दुनिया की
रह रह कानाफ़ूसी
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