अनुभूतियाँ :क़िस्त 16
1
कितनी बार कहा है तुम से
भले बुरे का ज्ञान नहीं है,
दुनिया है तो लूटेगी ही
जीवन-पथ आसान नहीं है ।
2
मेरी छोड़ो, मेरा क्या है
मैं हूँ, दिल है, तनहाई है,
आह नहीं भर सकता हूँ मैं
उस मे तेरी रुसवाई है ।
3
’शुचिता’ हो जब मन के अन्दर
मन का दरपन और निखरता,
रंग प्रेम का जब मिलता है
निर्मल जीवन और सँवरता ।
64
दुनिया ख़त्म नहीं हो जाती
टूट गया दिल अगर कभी तो
यह तो मन की एक अवस्था
वरना आगे राह अभी तो ।
-आनन्द.पाठक-
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