ग़ज़ल 212 [16 A]
221---2122---221---212
बह्र-ए-मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब मह्ज़ूफ़
मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन----मफ़ऊलु--फ़ाइलुन
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तुम पास ही खड़ी थी ,मुझको ख़बर नहीं
मुझसे कटी कटी थी. मुझको ख़बर नहीं
आवाज़ दिल की अपनी किसको सुना गया
क्या तुमने भी सुनी थी ? मुझको ख़बर नहीं
ख़ामोश ही रही तुम, इज़हार-ए-इश्क़ पर
क्या मुझमें कुछ कमी थी ? मुझको ख़बर नहीं
आने को कह गई थी जब जा रही थी तुम
आँखों में क्यों नमी थी ? मुझको ख़बर नहीं
मैने नहीं लगाई यह आग इश्क़ की
कैसे कहाँ लगी थी , मुझको ख़बर नहीं
तुम से मिली नज़र तो ख़ुद में न ख़ुद रहा
कैसी वो बेख़ुदी थी मुझको ख़बर नहीं
कब आशिक़ी में ’आनन’ रहती ख़बर किसे
चाहत थी ?बन्दगी थी? मुझको ख़बर नहीं
-आनन्द.पाठक-
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