सोमवार, 31 जनवरी 2022

ग़ज़ल 212 : तुम पास ही खड़ी थी--

 ग़ज़ल 212

221---2122---221---212

बह्र-ए-मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब मह्ज़ूफ़

मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन----मफ़ऊलु--फ़ाइलुन

=========  =========  =====


तुम पास ही खड़ी थी ,मुझको ख़बर नहीं

मुझसे कटी कटी थी. मुझको ख़बर नहीं


आवाज़ दिल की अपनी किसको सुना गया

क्या तुमने भी सुनी थी ? मुझको ख़बर नहीं


ख़ामोश ही रही तुम, इज़हार-ए-इश्क़ पर

क्या मुझमें कुछ कमी थी ? मुझको ख़बर नहीं


आने को कह गई थी जब जा रही थी तुम

आँखों में क्यों नमी थी ? मुझको ख़बर नहीं


मैने नहीं लगाई यह आग इश्क़ की

कैसे कहाँ लगी थी , मुझको ख़बर नहीं


तुम से मिली नज़र तो ख़ुद में न ख़ुद रहा

कैसी वो बेख़ुदी थी मुझको ख़बर नहीं


कब आशिक़ी में ’आनन’ रहती ख़बर किसे

चाहत थी ?बन्दगी थी? मुझको ख़बर नहीं


-आनन्द.पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं: