शनिवार, 8 जनवरी 2022

ग़ज़ल 206[62] : जो बर्फ़ पड़ी दिल की चादर पे

 ग़ज़ल  206[62]

221---1222 // 221- 1222


जो बर्फ़ पड़ी दिल की चादर पे, पिघलने दो

रिश्तों को तपिश दे दो, इक राह निकलने दो


क़िस्मत से मिला करते ,ज़ुल्फ़ों के घने साए

गर आग मुहब्बत की जलती है तो जलने दो


मायूस नहीं होना हालात-ए-मुकद्दर से 

आएँगी बहारें भी, मौसम तो बदलने दो 


तुम हाथ बढ़ा दो तो , इतिहास बदल देंगे

रग रग में लहू उबले . कुछ और उबलने दो


गुलशन हैं लगे खिलने, महकी हैं हवाएँ भी

बहके हैं क़दम मेरे ,मुझको न सँभलने दो


मालूम मुझे भी है, यह नाज़-ओ-अदा नख़रे

यह हुस्न मुझे छलता , छलता है तो छलने दो


आज़ाद परिन्दें हैं ,रोको न इन्हें ’आनन’

पैग़ाम-ए-मुहब्बत से , दुनिया को बदलने दो


-आनन्द.पाठक-

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