शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

ग़ज़ल 209[57] : ’कथनी’ में क्या क्या न कहा करते है

 ग़ज़ल 209[57] : कथनी में क्या क्या न कहा करते हैं

मूल बह्र 

21--121--121--121---122 =20


’कथनी’ में क्या क्या न कहा करते हैं

’करनी’ पर मुँह फेर लिया करते हैं


घोटालों में जीने  मरने वाले

घोटालों से साफ़ मना करते हैं


आँसू उतने क्षार नहीं हैं मेरे

जितने उनके हास लगा करते हैं


सोच रहे वो दुनिया हैं मुठ्ठी में

किस दुनिया में लोग रहा करते हैं


नफ़रत हिंसा आग लगाने वाले

माचिस डिब्बी साथ रखा करते हैं


देश भरा है जब तक गद्दारों से

किस भारत की बात किया करते हैं


छाँव तले के पौध नहीं हम ,’आनन’

धूप कड़ी हो राह चला करते हैं


-आनन्द.पाठक-


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