शनिवार, 8 जनवरी 2022

ग़ज़ल 205[19] : तुम्हें जब तक ख़बर होगी--

 ग़ज़ल  205 [19]

1222---1222---1222--1222--


तुम्हें जब तक ख़बर होगी बहुत कुछ हो गया होगा

वो सूली से उतर कर भी दुबारा चढ़ चुका होगा


जो कल तक घूमता था हाथ में लेकर खुला ख़ंज़र

वो ’दिल्ली’ की इनायत से मसीहा बन गया होगा


तुम्हे जिसकी गवाही पर ,अरे ! इतना भरोसा है

वो अपने ही बयानों से मुकर कर हँस रहा होगा


फ़क़त कुरसी निगाहों में, जहाँ था ’स्वार्थ’ का दलदल

तुम्हारा ’इन्क़लाबी’ रथ ,वहीं अब तक धँसा होगा


चलो माना हमारी मौत पर ’अनुदान ’ दे दोगे

मगरमच्छों के जबड़ों से वो क्या अबतक बचा होगा ?


गड़े मुरदे उखाड़ोगे कि जब तक साँस फ़ूँकोगे

कि ज़िन्दा आदमी सौ बार जी जी कर मरा होगा 


उठानी थी जिसे आवाज़ मेरे हक़ में, संसद में

वो कुरसी के ख़यालों में, जम्हाई ले रहा होगा 


भला ऐसी अदालत से करे फ़रियाद क्या ’आनन’

जहाँ क़ानून अन्धा हो ,जहाँ आदिल बिका होगा


-आनन्द.पाठक-



 

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