ग़ज़ल 203
2122---2122--2122--212
आप के आने से पहले आ गई ख़ुश्बू इधर
ख़ैरमक़्दम के लिए मैने झुका ली है नज़र
यह मेरा सोज़-ए-दुरूँ, यह शौक़-ए-गुलबोसी मेरा
अहल-ए-दुनिया को नहीं होगी कभी इसकी ख़बर
नाम भी ,एहसास भी, ख़ुश्बू-सा है वह पास भी
दिल उसी की याद में है मुब्तिला शाम-ओ-सहर
तुम उठा दोगे मुझे जो आस्तान-ए-इश्क़ से
फिर तुम्हारा चाहने वाला कहो जाए किधर ?
बेनियाज़ी , बेरुख़ी तो ठीक है लेकिन कभी
देखने को हाल-ए-दुनिया आसमाँ से तो उतर ।
यह मुहब्बत का असर या इश्क़ का जादू कहें
आदमी में ’आदमीयत’ अब लगी आने नज़र
शेख़ जी ! क्या पूछते हो आप ’आनन’ का पता ?
बुतकदे में वह कहीं होगा पड़ा थामे जिगर
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
सोज़-ए-दुरुँ = हृदय की आन्तरिक वेदना
शौक़-ए-गुलबोसी = फूलों को चूमने की तमन्ना
अहल-ए-दुनिया को = दुनिया वालों को
1 टिप्पणी:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 5 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्।
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