अनुभूतियाँ : क़िस्त 15
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कितनी दूर चलेंगे हम तुम
सपनों की झूठी छाया में
जीवन है इक सख़्त हक़ीक़त
कब तक जीना इस माया में ।
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यक्ष ने क्या क्या और कहा था
मेघ ! तुम्हें वह दूत बना कर ?
तुम भी मेरी पाषाणी को
हाल बताना बढ़ा-चढ़ा कर ।
59
मेघ ! ज़रा यह भी बतलाना
क्या वो मिली थी तुम से आकर?
हाल सुनी तो क्या क्या बोली ?
भाग गई या आँख चुरा कर ?
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अगर तुम्हें लगता हो ऐसा
साथ छोड़ना ही अच्छा है
मिला तुम्हें हमराह नया जो
मुझसे क्या ज़्यादा सच्चा है?
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