शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 15

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 15


57

कितनी दूर चलेंगे हम तुम

सपनों की झूठी छाया में

जीवन है इक सख़्त हक़ीक़त

कब तक जीना इस माया में ।

 

58

यक्ष ने क्या क्या और कहा था

मेघ ! तुम्हें वह दूत बना कर ?

तुम भी मेरी पाषाणी को

हाल बताना बढ़ा-चढ़ा कर ।

 

59

मेघ ! ज़रा यह भी बतलाना

क्या वो मिली थी तुम से आकर?

हाल सुनी तो क्या क्या बोली ?

भाग गई या आँख चुरा कर ?

 

60

अगर तुम्हें लगता हो ऐसा

साथ छोड़ना ही अच्छा है

मिला तुम्हें हमराह नया जो

मुझसे क्या ज़्यादा सच्चा है? 


 

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