अनुभूतियाँ : क़िस्त 14
53
आने वाले कल को किसने
कब देखा है, कब सोचा है ?
फिर भी सपने बुनते रहते
जान रहे हैं सब धोखा है ।
54
किसको फ़ुरसत सुने हमारी
सब के अपने अपने ग़म हैं
ऊपर ऊपर हँसते रहते
भीतर भीतर आँखें नम हैं ।
55
औरों के ग़म एक तरफ़ हैं
अपना ग़म ही लगता बढ़ कर
और तुम्हारे हुस्न का जादू
बोल रहा है सर पर चढ़ कर ।
56
कितने थे मासूम तुम्हारे
प्रश्न जो तुम पूछा करती थी
प्यार मुहब्बत क्या होता है
जीवन क्या? सोचा करती थी ।
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