शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 14

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 14


53

आने वाले कल को किसने

कब देखा है, कब सोचा है ?

फिर भी सपने बुनते रहते

जान रहे हैं सब धोखा है ।

 

54

किसको फ़ुरसत सुने हमारी

सब के अपने अपने ग़म हैं

ऊपर ऊपर हँसते रहते

भीतर भीतर आँखें नम हैं ।

55

औरों के ग़म एक तरफ़ हैं

अपना ग़म ही लगता बढ़ कर

और तुम्हारे हुस्न का जादू

बोल रहा है सर पर चढ़ कर ।

 

56

कितने थे मासूम तुम्हारे

प्रश्न जो तुम पूछा करती थी

प्यार मुहब्बत क्या होता है

जीवन क्या? सोचा करती थी ।


 

कोई टिप्पणी नहीं: