ग़ज़ल 442[16-जी] : आदमी में शौक़-ए-उलफ़त
2122---2122---2122---212
आदमी में शौक़-ए-उल्फ़त और रहमत चाहिए
सोच में हो सादगी, दिल में दियानत चाहिए ।
सोच में हो सादगी, दिल में दियानत चाहिए ।
साँस ले ले कर ही जीना ज़िंदगी काफी नहीं
ज़िंदगी के रंग में कुछ और रंगत चाहिए ।
अह्ल-ए-दुनिया आप की बातें सुनेगे एक दिन
आप की आवाज़ में कुछ और ताक़त चाहिए ।
जब कि चेहरे पर तुम्हारे गर्द भी है दाग़ भी
सामने जब आईना , फिर क्या वज़ाहत चाहिए ।
कश्ती-ए-हस्ती हमारी और तूफ़ाँ सामने
ख़ौफ़ क्या, बस आप की नज़र-ए-इनायत चाहिए।
जानता हूँ ज़िंदगी की राह मुशकिल, पुरख़तर
आप की बस मेहरबानी ता कयामत चाहिए ।
ढूँढता हर एक दिल ’आनन’ सहारा , हमनशीं
मौज-ए-दर्या को भी साहिल की कराबत चाहिए ।
-आनन्द.पाठक-
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