सोमवार, 7 जुलाई 2025

ग़ज़ल 442 [16-जी] : आदमी में शौक़-ए-उल्फ़त --

 ग़ज़ल  442[16-जी] : आदमी में शौक़-ए-उलफ़त 

2122---2122---2122---212


आदमी में शौक़-ए-उल्फ़त और रहमत चाहिए
सोच में हो सादगी, दिल में दियानत चाहिए ।


साँस ले ले कर ही जीना ज़िंदगी काफी नहीं 

ज़िंदगी के रंग में कुछ और रंगत  चाहिए ।


अह्ल-ए-दुनिया आप की बातें सुनेगे  एक दिन

आप की आवाज़ में कुछ और ताक़त चाहिए ।



जब कि चेहरे पर तुम्हारे गर्द भी है दाग़ भी

सामने जब आईना , फिर क्या वज़ाहत चाहिए ।


कश्ती-ए-हस्ती हमारी और तूफ़ाँ सामने

ख़ौफ़ क्या, बस आप की नज़र-ए-इनायत चाहिए।



जानता हूँ ज़िंदगी की राह मुशकिल, पुरख़तर

आप की बस मेहरबानी ता कयामत  चाहिए ।


ढूँढता हर एक दिल ’आनन’ सहारा , हमनशीं

मौज-ए-दर्या को भी साहिल की कराबत चाहिए ।


-आनन्द.पाठक-





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