चंद माहिए : क़िस्त 109/19
:1:
बदरा बरसै रिमझिम
आग लगाता है
तन में मद्धिम मद्धिम ।
:2:
जल प्लावन कर जाता
बादल जब फटता
मन अपना डर जाता ।
:3:
उड़ता तेरा आँचल
नील गगन में ज्यों
उड़ता रहता बादल ।
:4:
कुछ भी ना कहती हो
अन्दर ही अन्दर
बस घुटती रहती हो ।
:5:
क्या तुम को सुनानी है
जैसे सबकी है
अपनी भी कहानी है ।
-आनन्द.पाठक-
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