गुरुवार, 17 जुलाई 2025

चन्द माहिये: 109/19

चंद माहिए : क़िस्त 109/19 


:1:

बदरा बरसै रिमझिम

आग लगाता है

तन में मद्धिम मद्धिम ।


:2:

जल प्लावन कर जाता

बादल जब फटता

मन अपना डर जाता ।


:3:

उड़ता तेरा आँचल

नील गगन में ज्यों

उड़ता रहता बादल ।


:4:

कुछ भी ना कहती हो

अन्दर ही अन्दर 

बस घुटती रहती हो ।


:5:

क्या तुम को सुनानी है

जैसे सबकी है

अपनी भी कहानी है ।


-आनन्द.पाठक-


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