बुधवार, 2 जुलाई 2025

ग़ज़ल 441-[15-जी ]: उनको अना ग़ुरूर का ऐसा चढ़ा--

 ग़ज़ल 

221---2121---1221---212


उनको अना, गुरूर का ऐसा चढ़ा नशा

ख़ुद को वो मानने लगे हैं आजकल ख़ुदा ।


हर दौर के उरूज़ का हासिल यही रहा

परचम बुलंद था जो कभी खाक में मिला ।


रुकता नहीं है वक़्त किसी शख़्स के लिए

तुम कौन तीसमार हो औरों से जो जुदा ।


जिसकी क़लम बिकी हो, ज़ुबाँ भी बिकी हुई

सत्ता के सामने वो भला कब हुआ खड़ा ।


जो सामने सवाल है उसका न ज़िक्र है

बातें इधर उधर की वो कब से सुना रहा ।


क़ायम है ऎतिमाद तो क़ायम है राह-ओ-रब्त

वरना तो आदमी न किसी काम का हुआ ।



’आनन’ ज़रा तू सोच में रद्द-ओ-बदल तो कर

फिर देख ज़िंदगी  कभी  होती नहीं  सज़ा ।



-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ 
उरूज़ = उत्त्थान, विकास

ऎतिमाद = विश्वास , भरोसा

राह-ओ-रब्त = मेल जोल, मेल मिलाप, दोस्ती


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