शनिवार, 28 जून 2025

ग़ज़ल 440 [14-जी] : एक मुद्दत से वह दुनिया से--

 ग़ज़ल 440 [ 24 जी] : एक मुद्दत से वह दुनिया से--


2122---2122---2122

एक मुद्दत से वो  दुनिया से ख़फ़ा है ।

मन मुताबिक़ जब न उसको कुछ मिला है 


जख़्म-ए-दिल कर रहे है हक़ बयानी

आदमी हालात से कितना लड़ा है ।


हारना या जीतना अपनी जगह है

हौसला उसका मगर कितना बड़ा है।


बाज कब आती हवाएँ साज़िशों से

पर चिराग़-ए-इश्क़ इन से कब डरा है।


हो गया अंधा कभी खुदगर्जियों से

आदमी अख़्लाक़ से कितना गिरा है ।


हौसला हिम्मत इरादा हो अगर तो

कौन सा है काम मुश्किल जो रुका है।


ज़िंदगी है इक गुहर नायाब ’आनन’

एक तुहफ़ा है , ख़ुदा ने की अता है ।


-आनन्द.पाठक-


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