गुरुवार, 23 सितंबर 2021

कविता 09 : फूल बन कर कहीं खिले होते

 

कविता 09 


फूल बन कर कहीं खिले होते

जनाब ! हँस कर कभी मिले होते

किसी की आँख के आँसू

बन कर बहे होते

पता चलता

यह भी ख़ुदा की बन्दगी है

क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।


मगर आप को फ़ुरसत कब थी

साज़िशों का ताना-बाना

बस्ती बस्ती आग लगाना

थोथे नारों से

ख्वाब दिखाना।

सब चुनाव की तैयारी है

दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।

 

-आनन्द.पाठक-

प्र 15-सितम्बर-22

 

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

किसी की आँख के आँसू
बन कर बहे होते
पता चलता
यह भी ख़ुदा की बन्दगी है
क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है
. . सच अपने लिए जिए तो क्या जिए, जो सुख पर दुःख तारने में है वह अपनी भौतिक सुख सुविधाओं की दौड़ धुप में कहाँ

बहुत सुन्दर