क़िस्त 012 ओके
45
साथ दिया है तूने इतना
मुझ पर रही इनायत तेरी
तुझे नया हमराह मिला है
फिर क्या रही ज़रूरत मेरी ।
46
रहने दे ’आनन’ तू अपना
प्यार मुहब्बत जुमलेबाजी
मेरे चाँदी के सिक्कों पर
भारी कब तेरी लफ़्फ़ाज़ी ?
47
दिल पर चोट लगी है इतनी
ख़ामोशी से डर लगता है
सब तो अपने आस-पास हैं
लेकिन सूना घर लगता है ।
48
इक दिन तो यह होना ही था
कौन नई सी बात हुई है ,
जिसको हँसी ख़ुशी समझा था
वह ग़म की सौगात हुई है ।
-आनन्द.पाठक-
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