शनिवार, 25 सितंबर 2021

ग़ज़ल 195 : जो शख़्स पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े--

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ग़ज़ल 195


जो शख़्स पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े

वह शख़्स मर गया कतार में खड़े खड़े


पूछा किसी ने हाल मेरी ज़िंदगी का जब

दो बूँद आँसुओं के बारहा निकल पड़े


गुमनामियों में खो गए किसी को क्या ख़बर

तारीकियॊं से जो तमाम उम्र थे लड़े


कालीन-सा वो बिछ गए बस एक ’फोन’ पर

जिनसे उमीद थी कि लेंगे फ़ैसले कड़े


पुतले थे बीस फ़ुट के शह्र में लगे हुए

बौनी थी जिनकी शख़्सियत, थे नाम के बड़े


रहबर तुम्हारी रहबरी में शक तो कुछ नहीं

जाने को था किधर कि तुम किधर को चल पड़े


’आनन’ तुम्हारी बात में न वो तपिश रही

दरबारियों के साथ जब से तुम हुए खड़े


-आनन्द.पाठक-


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