शनिवार, 25 सितंबर 2021

ग़ज़ल 196 : किसी से वफ़ाई ,किसी से ख़फ़ा हूँ

  ग़ज़ल 196

122----122-----122------122


किसी से वफाई किसी से ख़फ़ा हूँ

किया जो नहीं जुर्म उसकी सज़ा हूँ


किसी के लिए एक बदनाम शायर

किसी के लिए एक दस्त-ए-दुआ हूँ


कहीं भी रहो ढूँढ लेंगी निगाहें,

भले तुम छुपे, मैं न तुमसे छुपा हूँ


ज़रा आसमाँ से उतर कर तो देखो

तुम्हारे लिए क्या से क्या हो गया हूँ


भरी बज़्म में ज़िक्र तेरा न आया

वो महफ़िल वहीं छोड़ कर आ गया हूँ


मुझे क्या है लेना कलीसा हरम से

मुहब्बत में तेरी हुआ मुबतिला हूँ


अगर तुम ज़ुबाँ से सुनाना न चाहो

निगाहों से अपनी तुम्हें पढ़ रहा हूँ


न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’

अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ ।


-आनन्द.पाठक-


1 टिप्पणी:

Akhilesh Soni ने कहा…

ग़ज़ल का हर एक शेर बेमिसाल है पर मक़्ता ज़बरदस्त हुआ है।