दुम छल्ले दोहे 001
झूठ बोलना हो गया, राजनीति का धर्म ।
झूठ बोलना हो गया, राजनीति का धर्म ।
आँखों में पानी नहीं, फिर काहे का शर्म॥
कर्म वह वही करेगा,शर्म से नहीं मरेगा
सामाजिक इन्साफ की, ऐसे देवें हाँक ।
नफ़रत फैली शहर में ,गाँव गाँव में पाँक ॥
सदा रोटी सेंकेगा ।
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दल बदली करने लगे ,तपे तपाये लोग ।
बात कहाँ आदर्श की,अवसरवादी योग ॥
दल बदली करने लगे ,तपे तपाये लोग ।
बात कहाँ आदर्श की,अवसरवादी योग ॥
उन्हे अब शर्म न आवै।
लोकसभा देने लगी ,निर्वाचन की टेर ।
एक जगह जुटने लगे,कौआ -हंस-बटेर ॥
तमाशा देखन जोगू ।
’गाँधी टोपी’ पहन कर, निर्वाचन कम्पेन ।
’डीनर’ करते ’ताज’ में, हाथ लिए 'शम्पेन॥
ग़रीबी पर बोलेगा।
जिसने जितनी बेंच दी ,'टोपी' और 'जमीर ' ।
राजनीति में हो गयी , उतनी ही जागीर ॥
जिसने जितनी बेंच दी ,'टोपी' और 'जमीर ' ।
राजनीति में हो गयी , उतनी ही जागीर ॥
वही रहनुमा हमारा ।
लँगड़ा है ’स्केट’ पर ,अँधा लिए कमान ।
गूंगा गुंगियाता फिरे, भारत देश महान ॥
भला भगवान करेगा।
-आनन्द.पाठक-
सं 10-07-24
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