दोहे 01
झूठ बोलना हो गया, राजनीति का धर्म ।
झूठ बोलना हो गया, राजनीति का धर्म ।
आँखों में पानी नहीं, फिर काहे का शर्म॥
सामाजिक इन्साफ की, ऐसे देवें हाँक ।
नफ़रत फैली शहर में ,गाँव गाँव में पाँक ॥
दल बदली करने लगे ,तपे तपाये लोग ।
बात कहाँ आदर्श की,अवसरवादी योग ॥
लोकसभा देने लगी ,निर्वाचन की टेर ।
एक जगह जुटने लगे,कौआ -हंस-बटेर ॥
’गाँधी टोपी’ पहन कर, निर्वाचन कम्पेन ।
’डीनर’ करते ’ताज’ में, हाथ लिए 'शम्पेन॥
जिसने जितनी बेंच दी ,'टोपी' और 'जमीर ' ।
राजनीति में हो गयी , उतनी ही जागीर ॥
लँगड़ा है ’स्केट’ पर ,अँधा लिए कमान ।
गूंगा गुंगियाता फिरे, भारत देश महान ॥
-आनन्द.पाठक-
सं 10-07-24
सामाजिक इन्साफ की, ऐसे देवें हाँक ।
नफ़रत फैली शहर में ,गाँव गाँव में पाँक ॥
दल बदली करने लगे ,तपे तपाये लोग ।
बात कहाँ आदर्श की,अवसरवादी योग ॥
लोकसभा देने लगी ,निर्वाचन की टेर ।
एक जगह जुटने लगे,कौआ -हंस-बटेर ॥
’गाँधी टोपी’ पहन कर, निर्वाचन कम्पेन ।
’डीनर’ करते ’ताज’ में, हाथ लिए 'शम्पेन॥
जिसने जितनी बेंच दी ,'टोपी' और 'जमीर ' ।
राजनीति में हो गयी , उतनी ही जागीर ॥
लँगड़ा है ’स्केट’ पर ,अँधा लिए कमान ।
गूंगा गुंगियाता फिरे, भारत देश महान ॥
-आनन्द.पाठक-
सं 10-07-24
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