यह मेरा प्रथम व्यंग संग्रह है .इस संग्रह का प्रकाशन "अयन प्रकाशन १/२० ,मेहरौली दिल्ली ११००३० " .मूल्य १२५/-
दर्द के कई रूप होते हैं । जब समग्र दर्द एकाकार हो जाता है तो कोई आयाम नहीं रहता ,कोई रंग नहीं रहता ,आंसू बन जाता है ,फिर वह आंसू चाहे आप की आंखो से बहे या गालिब की आंखो से ,एक रंग हो जाता है । अभिव्यक्ति की शैली ,विधा मात्र के अन्तर से पीडा का मूल्यांकन कम हो उचित नहीं ।
व्यक्ति समाज की मूळ इकाई है .यह संभव नही कि समाज का परिवेश प्रभावित हो और व्यक्ति का व्यक्तित्व अप्रभावित रहे .यदि सामाजिक व्यवस्था में विकृतियाँ व्याप्त हो रहीं हो तो व्यक्ति का सोच प्रभावित होना तय है । दुषप्रभाव के प्रति आंख मूंद लेने से एक संवेदन शून्यता पैदा होती है । जब यही विरूपण की पीडा मानवीय संवेदंशीलामना व्यक्ति महसूस करता है तो प्रस्फुटित होती है एक कविता ,एक ग़ज़ल ,एक कहानी ,एक व्यंग . जन्म लेता है एक वाल्मीकि ।
व्यंग एक आईना है.यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपना रूप निहारते हैं ,संवारते हैं या हाथ में पत्थर उठाते हैं .इन्ही सब भावनाओं से मैंनें एक अकिंचन प्रयास किया है ।
पुस्तक के सभी व्यंग को इस साईट पर लिखना संभव तो नही ,पर मैं प्रयास करूंगा कि कुछ चुनिंदा व्यंग आप के समक्ष प्रस्तुत करूं ।
इस संग्रह में २८ व्यंगों का संकलन है :-
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