मंगलवार, 6 नवंबर 2007

साबुनी दोहे

नशा चढ़ गया फिल्म का ,टूटा उनका मौन
हर कन्या से पूछते 'हम आप के कौन'

'चारित्रिक व्यक्तित्व ' पर जो कीचड़ लग जाय
'सर्फ़-अल्ट्रा ' से धोइए श्वेत धवल होई जाय

साबुन मल मल जग मुआ धवल वस्त्र ना होय
हाथ ओ०के० मल्यो धवल धवल ही होय

लड़की देखन जाइहाओ वस्त्र लिहाओ चमकाय
हरा डटटर्जेंट व्हील का इज्ज़त लेय बचाय

सुपर सर्फ़ से धुल गयो ,भ्रष्टाचार लकीर
दाग ढूँढते रह गए साधू-संत-फकीर

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