चुनावी दोहे 05
राजनीति के घाट पर, भइ संतन की भीड़,
'पार्टियाँ बाँटे टिकट, टिकट लेइ धन-वीर ।
कंधे-कंधे ढो रहे , ले लँगडी सरकार ,
वही समर्थन वापसी, फिर वैतलवा डार ।
नहीं ताव नही आग वो ,नहीं उचित यह काल,
गाली देकर फँस गयो, आगे कौन हवाल ।
वादे करते जाइए, आश्वासन की भीख ,
जनता जाए भाड़ में लोकतंत्र की सीख ।
घड़ियाली आंसू बहे, देख दलित की भीड़,
धीरे-धीरे हो गई राजनीति की रीढ़ ।
राजनीति व्यापार में उलटी चलती रीति ,
कलतक जिनसे दुश्मनी ,आज उन्ही से प्रीति ।
लोकतंत्र के नाम पर भीड़्तंत्र पहचान ,
पत्थर को शिवलिंग समझ करे आचमन पान ।
-आनन्द.पाठक-
'पार्टियाँ बाँटे टिकट, टिकट लेइ धन-वीर ।
कंधे-कंधे ढो रहे , ले लँगडी सरकार ,
वही समर्थन वापसी, फिर वैतलवा डार ।
नहीं ताव नही आग वो ,नहीं उचित यह काल,
गाली देकर फँस गयो, आगे कौन हवाल ।
वादे करते जाइए, आश्वासन की भीख ,
जनता जाए भाड़ में लोकतंत्र की सीख ।
घड़ियाली आंसू बहे, देख दलित की भीड़,
धीरे-धीरे हो गई राजनीति की रीढ़ ।
राजनीति व्यापार में उलटी चलती रीति ,
कलतक जिनसे दुश्मनी ,आज उन्ही से प्रीति ।
लोकतंत्र के नाम पर भीड़्तंत्र पहचान ,
पत्थर को शिवलिंग समझ करे आचमन पान ।
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें