गीत ग़ज़ल और माहिया
-आनन्द पाठक -
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मन गाता है [ PDF Version]
शुक्रवार, 16 नवंबर 2007
दोहे
नारी थी पत्थर हुई , पत्थर से फिर नारि
देख 'अहल्या' ,सोचते इन्द्र वही व्यभिचार
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