दोहे 06
जो भी कहना है कहो, कह दो अपनी बात ।
लेकिन दिन को दिन कहो, कहो रात को रात ।।
सुन ले सबकी बात तू, सदा रहे यह ध्यान ।
दुनिया चाहे जो कहे , तू बस दिल की मान ।।
इधर उधर की बात में मन काहे उलझाय ।
सत्य खड़ा हो सामने, झूठ कहाँ रुक पाय ।।
बातें लच्छेदार हैं ,लेकिन मन में खोट ।
जाने कब कर दे कहाँ, सरे राह वह चोट ।।
दुनिया को मालूम क्या, क्या मेरे जज्बात ।
अर्थ लगाने लग गई, कही न जो थी बात ।।
कश्ती करती रही सदा, लहरों से संघर्ष ।
लेकिन जब डूबन लगी, हुआ सभी को हर्ष ।।
क्या पूजन, क्या अर्चना, मन न हुआ निष्काम ।
मद मे डूबा मन रहा, क्या तीरथ क्या धाम ।।
-आनन्द पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें