शुक्रवार, 16 नवंबर 2007

दोहे 06


 दोहे 06

जो भी कहना है कहो, कह दो अपनी बात ।
लेकिन दिन को दिन कहो, कहो रात को रात ।।

सुन ले सबकी बात तू, सदा रहे यह ध्यान ।
दुनिया चाहे जो कहे , तू बस दिल की मान ।।

इधर उधर की बात में मन काहे उलझाय ।
सत्य खड़ा हो सामने, झूठ कहाँ रुक पाय ।।

बातें लच्छेदार हैं ,लेकिन मन में खोट ।
जाने कब कर दे कहाँ, सरे राह वह चोट ।।

दुनिया को मालूम क्या, क्या मेरे जज्बात ।
अर्थ लगाने लग गई, कही न जो थी बात ।।

कश्ती करती रही सदा,  लहरों से संघर्ष ।
लेकिन जब डूबन लगी, हुआ सभी को हर्ष ।।

क्या पूजन, क्या अर्चना, मन न हुआ निष्काम ।
मद मे डूबा मन रहा, क्या तीरथ क्या धाम ।।

-आनन्द पाठक-


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