बुधवार, 22 मार्च 2023

ग़ज़ल 315[80इ] : ये अलग बात है वो मिला तो नहीं--

 ग़ज़ल 315  [ 80इ]


212---212---212---212


ये अलग बात है वो मिला तो नहीं

दूर उससे मगर मैं रहा तो नहीं


एक रिश्ता तो है एक एहसास है

फूल से गंध होती जुदा तो नहीं


उनकी यादों मे दिल मुब्तिला हो गया

इश्क की यह कहीं इबतिदा तो नहीं


कौन आवाज़ देता है छुप कर मुझे

आजतक कोई मुझको दिखा तो नहीं 


ध्यान में और लाऊँ मैं किसको भला

आप जैसा कोई दूसरा तो नहीं


लाख ’तीरथ’ किए आ गए हम वहीं

द्वार मन का था खुलना, खुला तो नहीं


आप जैसा भी चाहें समझ लीजिए

वैसे ’आनन’ है दिल का बुरा तो नहीं


-आनन्द.पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं: