105
मौन किसी का समझा, मैने
स्वप्न मेरा साकार हुआ है,
एक भरम था वह भी मेरा
अर्पण कब स्वीकार हुआ है ।
106
राह अलग जब चलना ही था
साथ चली फिर क्यों इतने दिन ?
एक भुलावा था, जाने दो
कितना जीना है अब तुम बिन ।
107
तुम ने भी तो देखा होगा
आँधी, तूफ़ाँ, बिजली, पानी,
तोड़ सकीं हैं कब ये
तुमको
जीने की जब तुमने ठानी ।
108
कभी
कभी जब अँधियारे में
दिख
जाती है एक रोशनी
मानॊ
मुझको बुला रही हो
फिर
जीने को नई ज़िंदगी ।
-आनन्द.पाठक-
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