145
भूल तुम्हारी थी या मेरी
कौन इसे अब बतलाएगा ?
बात शेष जब हो ही गई तो
व्यर्थ कोई क्या समझाएगा ?
146
आने को तो आएगी ही
फिर बहार मन के उपवन में,
पर फ़ूलों पर रंग न होगा
पहले था जैसा जीवन में ।
147
दिल में कोई अगन प्रेम की
लगती है तो लग जाने दो,
चाह, तमन्ना, इश्क़, आरज़ू
धीरे धीरे जग जाने दो ।
148
छोड़ गई हो मुझे अकेला
तुमने दिया सहारा मुझको,
मैं तो कब का टूट चुका था
जीवन मिला दुबारा मुझको ।
-आनन्द.पाठक-
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