गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 37

 145

भूल तुम्हारी थी या मेरी

कौन इसे अब बतलाएगा ?

बात शेष जब हो ही गई तो

व्यर्थ कोई क्या समझाएगा ?

 

146

आने को तो आएगी ही

फिर बहार मन के उपवन में,

पर फ़ूलों पर रंग न होगा

पहले था जैसा जीवन में ।

 

147

दिल में कोई अगन प्रेम की

लगती है तो लग जाने दो,

चाह, तमन्ना, इश्क़, आरज़ू

धीरे धीरे जग जाने दो ।

 

148

छोड़ गई हो मुझे अकेला

तुमने दिया सहारा मुझको,

मैं तो कब का टूट चुका था

जीवन मिला दुबारा मुझको ।


-आनन्द.पाठक-


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