रविवार, 18 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 29

  

113

दिल तो है आवारा बादल

इधर उधर फिरता रहता है,

प्यासी धरती दिखी कहीं तो

जल प्लावन करता रहता है ।

 

114

सोच रहा हूँ लोग यहाँ क्यों

चेहरे बदल बदल कर मिलते

ऊपर से तो सहज दिखे हैं

भीतर भीतर चालें चलते ।

 

115

वक़्त इधर क्या बदला मेरा

लोगों ने भी आँखें फेरी,

कलतक आँखों की पुतली थे

आज उन्होने आँख तरेरी ।

 

116

रब ने दिया बहुत कुछ सबको

परबत, घाटी, गुलशन, झरना ,

लेकिन साथ नहीं हो जब तुम

तो फिर क्या इन सबका करना ।


-आनन्द.पाठक-


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