रविवार, 18 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 26

 

101

आँख खुली तो देखा मैने

बात कहाँ से कहाँ बढ़ गई ।

मैं सपनॊ में खोया खोया

धूप कहाँ से कहाँ चढ़ गई

 

102

फेर लिया मुँह तुमने जिससे

कौन भला उसको अपनाए ,

इधर उधर कब तक भटकेगा

शाम ढलेगी लौट कर आए।

 

103

जीवन की अब शाम हुई है

सुधियों के कुछ दीप जले हैं,

व्यस्त रहे हम भाग दौड़ में

यादों से हम आज मिले हैं ।

 

104

शाम हुई अब तो घर आ जा

थका हुआ होगा दिन भर का,

कितनी खोंच लगा दी तुम ने

हाल किया क्या इस चादर का ।


-आनन्द पाठक-


 

कोई टिप्पणी नहीं: