एक ग़ज़ल 286/51
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बनाया है जैसा, मैं वैसा बना हूँ
भला हूँ, बुरा हूँ , मगर आप का हूँ
मेरे आब-ओ-गिल में कमी तो नही थी
गुनाहों का फिर क्यों मैं पुतला बना हूँ
इलाही मेरा शौक़ क्या आजमाना
अज़िय्यत में भी आप से बावफ़ा हूँ
बलायें, मसाइब सब अपनी जगह हैं
मैं अपने मुक़ाबिल हूँ ख़ुद से लड़ा हूँ
मैं टूटा हुआ शाख से एक पत्ता
इधर से उधर मै भटकता रहा हूँ
चराग़-ए-मुहब्बत जलाया किसी ने
नवाज़िश है जिसकी, उसे ढूँढता हूँ
मैं ’आनन’ कि माना नमाज़ी नहीं हूँ
मगर आप का मैं रहा आशना हूँ
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
आब -ओ--गिल = मिट्टी पानी[ ऐसा माना गया कि ख़ुदा ने आदमी कोआब-ओ-गिल से बनाया]
बज़ाहिर = जो ज़ाहिर है ,जो दिख रहा है ,
अज़िय्यत में =शारीरिक कष्ट,मानसिक कष्ट ,यातना में
आशना = चाहने वाला
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