रविवार, 18 दिसंबर 2022

मुक्तक 05/02डी

 :1;

चन्द लमहे भी क्या हसीं होते

आप मेरे जो हमनशीं होते

ज़िंदगी और भी संवर जाती

आप दिल के अगर मकीं होते


:2:

दीप उम्मीद का इक जलाए रखा

उनके स्वागत में पलकें बिछाए रखा

वो न आएँ  न आएँ भले उम्र भर

इक मिलन का भरम था बनाए रखा


:3:

यह चमन है हमारा, तुम्हारा भी है

ख़ून देकर सभी ने सँवारा भी है

कौन है जो हवा में ज़ह्र घोलता

कौन है जो दुश्मन का प्यारा भी है


;4:

बात क्या थी जो मुझसे छुपाई गई

जो सर-ए-बज़्म सबको बताई गई

कुछ भी कहने की मुझको इजाज़त नहीं

सिर्फ़ मुझ पर ही बन्दिश लगाई गई


-आनन्द.पाठक-

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