बुधवार, 21 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 035

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 035 ओके

137

जाओ जिसके साथ है जाना

क़दम क़दम पर साथ निभाना,

मेरा शुभ आशीष तुम्हें है-

उससे भी ना खेल रचाना ।

 

138

लाखों तारे नभ में लेकिन

टूट गया जब एक सितारा

चाँद कहाँ सोचा करता है

टूटा किसका कहाँ सहारा

 

139

बीत गई यह सारी उमरिया

भाग दौड़ ही करते करते ,

सुबह शाम बस दिन काटा है

पाप-पुण्य से डरते डरते ।

 

140

जिस दिन लगे तुम्हें कुछ ऐसा

बहुत हो चुका साथ हमारा

उस दिन राह अलग कर लेना

कुछ न कहेगा दिल बेचारा ।


-आनन्द.पाठक-


 

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