रविवार, 18 दिसंबर 2022

मुक्तक 06/03 डी

 :1: 

कहीं कुछ बात ऐसी है, छुपा कर रह गई तुम भी
जो होंठो पर रही बातें, दबा कर रह  गई तुम भी
ये मेरा क्या कि तनहा था कि तनहा ही रहूँगा मैं
जगे थे दर्द जो दिल में सुला कर रह गई तुम भी

:2:
आस्माँ देखते ना चला कीजिए
ठोकरों से ज़मीं पर बचा कीजिए
ज़िंदगी का सफ़र एक लम्बा सफ़र
हर क़दम सोच कर ही रखा कीजिए

:3:
कभी कभी तो डर लगता है कैसे प्यार सँभालूँगा मैं
इतना प्यार जो तुम करती हि कैसे कर्ज उतारूँगा मैं
देख रहा हूँ ख़्वाब अभी से आने वाले कल की जानम
इन्शा अल्लाह इक दिन तुमको पलकों पर बैठा लूंगा मैं

;4:
कुरबत ने कुछ तो दिल में उम्मीद है जगाई
आए थे ख़्वाब रंगी ,ना नींद आज आई
जाने किधर को लेकर जाएगा दिल दिवाना
यह कैसी तिश्नगी है ये कैसी आशनाई


-आनन्द.पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं: