बुधवार, 21 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 34

 

133

हर दिन होते नए बहाने

सब बातों के पास तुम्हारे,

आना ही जब तुम्हें नहीं है

क्यों करती रहती हो इशारे ?

 

134

आया है ऋतुराज का मौसम

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन,

तुम भी आ जाते- भूले से

दिल हो जाता खिल कर मधुवन ।

 

135

मजबूरी तो नहीं है कोई

खुला हुआ यह इक बन्धन है,

जब तुम चाहो लौट के आना

स्वागत है प्रिय ! अभिनन्दन है।

 

136

धरती खींच रही चन्दा को

चन्दा भी है खींचा करता

आकर्षण का सरल नियम है

इसमे कोई क्या कर सकता ?


-आनन्द.पाठक-


 

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