रविवार, 18 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 30

 

117

राहगुज़र यह नहीं तुम्हारी

राह हमारे लिए व्यर्थ है ,

अगर सफ़र में साथ नहीं तुम

सफ़र हमारा, बिना अर्थ है ।

 

118

ॠषिवर, मुनिवर, ज्ञानी, ध्यानी

बात यही  सब समझाते हैं

कर्म तुम्हारा, नियति तुम्हारी

दोनों अलग अलग बातें हैं

 

119

पहले ही मालूम मुझे था

अपनी सीमाएँ मजबूरी

सफ़र शुरू होने से पहले

तुमने स्वयं बना ली दूरी ।

 

120

सूरज चढ़ता सुबह अगर तो

शाम शाम तक ढलना ही है,

समय चक्र है घूमा करता

मौसम यहाँ बदलना ही है ।


-आनन्द.पाठक-

 

 

 

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