ग़ज़ल 287/52
2122---2122--212
2122---2122--212
काम जो भी जब करो अच्छा करो
लोग रख्खें याद कुछ ऐसा करो
कौन देता है किसी को रास्ता
ख़ुद नया इक रास्ता पैदा करो
भीड़ सड़कों पर उतर कर आ गई
इन हवाओं को जरा समझा करो
आस्माँ तक हैं तुम्हारी सीढ़ियाँ
बात लम्बी यूँ न तुम फेंका करो
रोशनी के नाम पर तुम शहर में
यूँ अँधेरें से न समझौता करो
लोग अन्दर तक बहुत टूटे हुए-
उनके चेहरों की खुशी जिंदा करो
लोग प्यासे हैं खड़े 'आनन' यहाँ
इक नदी लेकर इधर आया करो
-आनन्द.पाठक-
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