121
अंगारों को गठरी में रख
बाँध सका है कौन आजतक ?
दो-धारी तलवार प्यार की
साध सका है कौन आजतक ?
122
आज खड़ा हूँ दोराहे पर
दोनों ही राहों में उलझन ,
एक राह में सुखद कल्पना
दूजी राह व्यथित रहता मन ।
123
मेरी चाहत एक दिखावा
कह कर तुम ने किया किनारा ,
शायद तुमने देखा ना हो
जीता कैसे दिल बेचारा ।
124
साथ अगर तुम छोड़ न दोगी
साथ तुम्हारे चल सकता हूँ ,
और किसी को चाहूँ, तौबा
तुमको नही बदल सकता हूँ ।
-आनन्द.पाठक-
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