बुधवार, 21 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 31

 

121

अंगारों को गठरी में रख

बाँध सका है कौन आजतक ?

दो-धारी तलवार प्यार की

साध सका है कौन आजतक ?

 

122

आज खड़ा हूँ दोराहे पर

दोनों ही राहों में उलझन ,

एक राह में सुखद कल्पना

दूजी राह व्यथित रहता मन ।

 

123

मेरी चाहत एक दिखावा

कह कर तुम ने किया किनारा ,

शायद तुमने देखा ना हो

जीता कैसे दिल बेचारा ।

 

124

साथ अगर तुम छोड़ न दोगी

साथ तुम्हारे चल सकता हूँ ,

और किसी को चाहूँ, तौबा

तुमको नही बदल सकता हूँ ।


-आनन्द.पाठक-

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