गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 40

 157

कितने तारे नभ में बिखरे

नहीं रोशनी हुई धरा पर,

हर तारे को भरम यही है

वहीं चाँद है, वही दिवाकर

 

158

लाखों तारे नील गगन में

एक सितारा तन्हा भी है ।

खुशियाँ बाँटी सबसे मिल कर

दर्द अकेले सहना भी है ।

 

159

बात तुम्हारी यूँ तो सही है

मौसम, सुख-दुख, आना, जाना

जीवन के इस रंग-मंच पर

जो भी है किरदार, निभाना

 

160

जख़्म भला है कौन सा ऐसा

वक़्त नही जिसको भर पाए

जख़्म दिया जो तुमने मुझको

 भरते भरते वह भर जाए ।  

-आनन्द.पाठक-          

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