161
देकर साथ समय पर तुम ने
ख़ुशियाँ भर दी है झोली में
रूप तुम्हारा सजा रखा है
अपने मन की रंगोली में
162
लोगों ने जो झूठ कहा है
तुमने क्यों सच मान लिया है ?
बात नहीं मेरी सुननी है-
क्या तुमने यह ठान लिया है ?
163
अपने मन की बात कहाँ है
होगा वही जो रब की मरजी,
तुम से यह उम्मीद नहीं थी
प्यार मुहब्बत में ख़ुदगरजी ।
164
रूप तुम्हारा ही काफी था
और क़यामत क्या ढाती तुम,
सुध-बुध अपनी खो देता हूँ
मधुरिम स्वर में जब गाती तुम ।
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