शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ :क़िस्त 041

 अनुभूतियाँ 041 ओके

161

देकर साथ समय पर तुम ने

ख़ुशियाँ भर दी है झोली में

रूप तुम्हारा सजा रखा है

अपने मन की रंगोली में

 

162

लोगों ने जो झूठ कहा है

तुमने क्यों सच मान लिया है ?

बात नहीं मेरी सुननी है-

क्या तुमने यह ठान लिया है ?

 

163

अपने मन की बात कहाँ है

होगा वही जो रब की मरजी,

तुम से यह उम्मीद नहीं थी

प्यार मुहब्बत में ख़ुदगरजी ।

 

164

रूप तुम्हारा ही काफी था

और क़यामत क्या ढाती तुम,

सुध-बुध अपनी खो देता हूँ

मधुरिम स्वर में जब गाती तुम ।


 

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