ग़ज़ल 293[58इ]
2122---1212--22
ये हक़ीक़त है या फ़साना है
हर जगह आप का ठिकाना है
आप से हम क़रार क्या करते
आप को कौन सा निभाना है
वक़्त की बारहा कमी रोना
जानता हूँ फ़क़त बहाना है
आप आएँ ग़रीबख़ाने पर
ख़ैर मक़दम में सर झुकाना है
आसमाँ से ज़मीं पे आ जाते
हाल-ए-दुनिया तुम्हे दिखाना है
रूठ कर जाते भी कहाँ जाते
लौट कर फिर यहीं पे आना है
इल्तिज़ा और क्या करूँ ’आनन’
वक़्त रहते न उनको आना है
-आनन्द.पाठक-
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