बुधवार, 11 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 81

 

321

क्या मुझको मालूम नहीं तुम

दर्द छुपा कर हँसती रहती,

जाने कौन अगन है ऐसी

जिसमें तुम बस जलती रहती?

 

322

प्यार में मुझको जो भी हासिल

दर्द मेरा है, मेरी थाती,

खुशियाँ कब तक साथ रहेंगी

दुख तो जीवन भर का साथी ।

 

323

तुम को चाहा हुई न मेरी

और किसी की भी न हुई तुम,

हर दिन यह महसूस हो रहा

छू कर जैसे गुज़र रही तुम ।

 

324

सबकी अपनी अपनी मंज़िल

सबकी अपनी दुनियादारी,

सबके अपने अपने बंधन

सबकी अपनी है लाचारी।  


 

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