सोमवार, 9 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त72

 

285

बादल बरसे या ना बरसे

होता नहीं असर अब मुझ पर,

तेल चुक गया जिस दीपक मे

कभी जला फिर क्या वह बुझ कर ।

 

286

अपना बन कर छला सभी ने

फिर भी कोई नहीं गिला है

आँख मूँद कर करूँ भरोसा

अबतक कोई नहीं मिला है।

 

287

’कथनी’ में कुछ, ’करनी’ में कुछ

चेहरे पर चेहरे थे उनके,

हवा हवाई की बातें थी

क्या करते हम उनको सुन के ।

 

 

288

पथरीली राहों से चल कर

सागर से जब मिलने आई,

प्यास मिलन की लेकर नदिया

नाप रही अपनी गहराई ।


 

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