425
पा न सका हूँ अबतक मंज़िल
हर मंज़िल की एक कथा है
याद करूँ तो आँखें नम हो
हर आँसू की एक व्यथा है
426
जनम जनम की बात हुई थी
एक जनम भी नहीं निभाया !
अच्छा, कोई बात नहीं, प्रिय !
सदा रहूँगी बन कर छाया ।
427
जब श्रद्धा के फूल न खिलते
तो फिर पूजन-अर्चन क्या है
,
तुम ही उतरो जब न हॄदय में
ढोल-मजीरा
कीर्तन क्या है ।
428
प्रेम का धागा ,कच्चा धागा
लेकिन पक्के से पक्का है ,
प्रेम न होता हवा-हवाई
सच्चे से भी वह सच्चा है ।
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