शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 107

 

425

पा न सका हूँ अबतक मंज़िल

हर मंज़िल की एक कथा है

याद करूँ तो आँखें नम हो

हर आँसू की एक व्यथा है

 

426

जनम जनम की बात हुई थी

एक जनम भी नहीं निभाया !

अच्छा, कोई बात नहीं, प्रिय !
सदा रहूँगी बन कर छाया ।

 

427

जब श्रद्धा के फूल न खिलते

तो फिर  पूजन-अर्चन क्या है ,

तुम ही उतरो जब न हॄदय में

ढोल-मजीरा कीर्तन क्या है ।

 

428

प्रेम का धागा ,कच्चा धागा

लेकिन पक्के से पक्का है ,

प्रेम न होता हवा-हवाई

सच्चे से भी वह सच्चा है ।


 

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